JOB HOURS IN INDIA | DUTY HOURS IN INDIA

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JOB HOURS IN INDIA | DUTY HOURS IN INDIA 

नौकरी कितने घंटे की होनी  चाहिए ?

कुछ महीने पहले ही भारत के दिग्गज उद्योगपति सफल कारोबारी, और इन्फोसिस कंपनि के को फाउंडर  एन आर नारायण मूर्ति जी एक बड़ा बयान दिया था कि अगर भारत देश को इकोनॉमिकल सुपर पावर बनना है तो Indian को सप्ताह में काम से कम 70 घंटे काम करना चाहिए, हफ्ते में 70 घंटे का मतलब अगर सोमवार से शनिवार तक काम किया जाए तो लगभग 11 से 12 घंटे प्रतिदिन के पड़ेंगे, नारायण मूर्ति जी का बयान इतना ज्यादा वायरल हुआ कि देशभर में इस विषय को लेकर लोग दो Divisions में बट गए और लेबर वेलफेयर एसोसिएशन और मजदूर नेता को नारायण मूर्ति जी का बयान खटकने लगा, वहीं भारत को विश्व में आर्थिक महाशक्ति बनाने का सपना देखने वाले लोगों को यह बयान बहुत प्यारा लगे, सवाल यह उठता है की दुनिया भर में Work Culture यानी कार्य संस्कृति की मांग क्या है और भारत में वर्क कल्चर का प्रावधान क्या होना चाहिए, नौकरी कितने घंटे की होनी  चाहिए ?

नारायण मूर्ति जी बयान के बाद ऐसा लगा की विश्व भर की अर्थव्यवस्थाओं के साथ तालमेल बैठाने और दुनिया की ताकतवर कंपनियों से आगे निकलने का दबाव भारत के कंपनियों और कर्मचारियों पर पड़ने वाला है, नारायण मूर्ति जी के बयान के अनुसार भारत देश की Productivity काफी कम है, और अगर हमें अपनी Production को बढ़ाना है, चीन जैसे कई देशों से व्यापारिक तुलना करनी है, तो कई Labour Reform करने आवश्यक है, कई कारोबारी ने नारायण मूर्ति जी के बयान का स्वागत भी का, जिंदल स्टील के मालिक सज्जन जिंदल ने यहां तक कह दिया कि हमारे देश के प्रधानमंत्री प्रतिदिन 14 से 16 घंटे काम करते हैं, देश के प्रति समर्पित युवाओं को भी उनसे प्रेरणा लेकर ज्यादा काम करके देश को आगे बढ़ाने में सहायता करनी चाहिए |

सवालिया खड़ा होता है की नौकरी आखिर कितने घंटे की होनी चाहिए, जो मल्टीनेशनल कंपनियां अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में सुबह 9:00 बजे से शाम के 5:00 बजे तक ही कामकाज को प्राथमिकता देती हैं, शनिवार रविवार को अपने कर्मचारियों को छुट्टियां देती हैं, वही कंपनियां भारत में आने के बाद द्वारा मापदंड अपनाने लगते हैं, और यहां आकर 11 से 12 घंटे काम करने की डिमांड करने लगते हैं, अगर पश्चिमी देशों में वर्क लाइफ बैलेंस के तालमेल को बैठकर काम करना चाहिए तो भारत में भी वर्क लाइफ बैलेंस पर फोकस क्यों नहीं किया जाना चाहिए, पश्चिमी देशों में किसी भी नौकरी या व्यवसाय में काम के घंटे इस प्रकार से रखे जाते हैं कि किसी भी कर्मचारी की निजी और सामाजिक जीवन शैली नकारात्मक रूप से प्रभावित न हो.

कोरोना कल के समय में कर्मचारियों से वर्क फ्रॉम होम के नाम पर 12-12 घंटे तक की ड्यूटी ली गई है जो बहुराष्ट्रीय कंपनियां विदेश में 8 घंटे से ऊपर के ड्यूटी नहीं ले पाती हैं वही कंपनियां भारत में अपना दफ्तर खोोलते ही खोलते ही 11 से 12 घंटे भारतीय कर्मचारियों से काम करवाने लगते हैं | 

भारतीय कर्मचारियों को लेकर सारे लोगों के मन में और खासकर विदेशियों के मन में यह धारणा है कि भारतीय कर्मचारी अपने काम के प्रति ज्यादा समर्पित नहीं होते हैं, भारत देश के ज्यादातर सरकारी कार्यालय में कर्मचारी या तो समय पर नहीं आते हैं या फिर अपनी कुर्सी से गायब रहते हैं तथ्य जितना भी सही हो लेकिन इस बात से हम इनकार नहीं कर सकते कि आजकल हर सरकारी ऑफिस में उपस्थिति अनिवार्य करने के लिए बायोमैट्रिक अटेंडेंस सिस्टम और कामकाज को चेक करने के लिए एनुअल अप्रेजल वाली व्यवस्था को लागू कर दिया गया है भारत देश में ही काम को लेकर के दो वर्ग बटे हुए हैं प्राइवेट सेक्टर में जहां लोग 11 से 12 घंटे तक ड्यूटी करने के लिए मैं मजबूर है वही सरकारी कार्यालय में कर्मचारी उपस्थित के लिए संघर्ष करते हैं | Accoridng to Periodic Labour Force Survey (PLFS) 2020-21, Government sector employed 10.8 % of the total workforce in India, while the private sector employed 88 %.

आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने कहा था कि भारतीय लोग चीनी कर्मचारियों के तुलना में आलसी होते हैं और उसका कारण हमारे देश की भौगोलिक व्यवस्था है, भारतीय लोग काफी सहनशील होते हैं यही कारण है कि जितने भी मल्टीनेशनल कंपनियां विदेशों में अपने कर्मचारियों को जबरन छुट्टी पर भेजते हैं जबकि भारत में वही कंपनियां ज्यादा काम करवा लेते हैं |

आज से 50 साल पहले Indian साप्ताहिक लगभग 40 घंटे काम करता था और आज की उपस्थिति दिल्ली मुंबई जैसे बड़े शहरों में 60 घंटे तक औसतन साप्ताहिक कार्यक्रम हो चुका है |

काम कितने घंटे करने चाहिए नारायण मूर्ति जी के इस बयान पर दो भाग में  जाना स्वाभाविक है अगर देश के इकोनॉमिकल पावर को आगे बढ़ाना है प्रोडक्टिविटी को आगे बढ़ाना है तो काम के घंटे को बढ़ाना ही पड़ेगा और अगर लोग वर्क लाइफ बैलेंस को लेकर के चलेंगे तो किसी भी कर्मचारी का लंबे समय तक ज्यादा काम करना उसके सामाजिक जीवन शैली पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है जिसके दूरगामी गंभीर परिणाम हो सकते हैं |

देखना यह है हमारे देश की सरकार और श्रम  मंत्रालय इस बारे में अपना क्या पक्ष रखना है और नौकरी करने की घंटे की परिभाषा भविष्य में क्या होती है

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